Thursday, December 23, 2010

;;;;;;;;;;;;;;;;;; माचिस ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

कैसे मैं सर उसके मारू येह दोष ,
माचिस की डिबिया में रहेती जो रोज ,
नन्ही सी तीली लगाये न आग ,
वो थी जिसके हाथो में उसका येह दोष l
.
उजाला किया जिसने घर था वो मेरा ,
जला सबसे पहेले वो बिस्तर था मेरा ,
न सोचा था उसने जलाने  से पहेले ,
मेरी बच्ची थी ओढ़े सपने सुँनहेरे l
.
तखिये के निचे जो गीता थी पूरी ,
जली वो भी बिन मेरे आधी अधूरी ,
उसी का वचन कोई मरता न मारे ,
 हुवा फिर खड़ा मैं उसी के सहारे l


;;;;;;;;;;;;;;;;;;; अतुल राणे ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

1 comment: