Monday, May 28, 2012

;;;;;;;;;;; रामायण ;;;;;;;;;;;



कोई ना बच पाया इससे राजा हो या रंक,
समय समय पर समय दिखाये कालजहर का डंख 
  
एक ये हे श्रीराम जिसे जग माने हे भगवान ,
जिसने सारा जग जिता और पाया हर सन्मान,
पर खुद्कीहि मा ने ऐसे बेटे को ठुकराया,
सौतेले बेटेने फिरभी अपना धर्म निभाया ,
वचन पिता का पाला लेकीन काटे खुद्के पंख  
समय समय पर समय दिखाये कालजहर का डंख. 

समय का पहिया फिरा यु ऐसे, लागे कोई भास,
भाई को सिंहासन सोपा, खुद भोगे वनवास,
वन वन भटका फिरभी इनको हर्ष कहा मिल पाया,
शूर्पणखा का बदला लेने देखो रावण आया ,
मा सीता का हरन किया और फुंका रण का शंख,
समय समय पर समय दिखाये कालजहर का डंख.

सागर पर सेतू बनवाया बिना नाव पतवार,  
लेकर वानरसेना देखो राम चले उस पार,
रावण का वध करने आये ये लंका कि ओर, 
एक पति का धर्म निभाने युद्ध किया घनघोर,  
 हर पाप का अंत बुरा हि होना है निस्शंक,
समय समय पर समय दिखाये कालजहर का डंख.

रामचंद्रजी जिते करके रावण का संहार,
लेकीन फिर पड्नीहि थी वो कालचक्र कि वार,
मर्यादापुरशोत्तम को थी प्रजाजनो कि आन, 
अग्नी मे जाकर सीता को करना पडा प्रमाण, 
तुटे एक परिवार के ये उलटी गिनती के अंक, 
समय समय पर समय दिखाये कालजहर का डंख.

अश्वमेध से आज उठा प्रश्नो का मायाजाल, 
एक धोबी कि शंका से जो बिछड चुका परिवार,
ऐसे बिखरे तुकडो का अब मिलन कराये कोई, 
विरहा में जलते राम यहा, वन में गर्भित वैदेही,
ना जाने अब काल दिखाये कौन कौन से रंग,
समय समय पर समय दिखाये कालजहर का डंख. 

;;;;;;;;;; अतुल राणे ;;;;;;;;

;;;;;;;; माझ्यातला वेडा पुन्हा... ;;;;;;;;



माझ्यातला वेडा पुन्हा परतून केव्हा यायचा ,
अन तिच्यातील गोडवा कवितेत केव्हा यायचा...!

मी तिच्यासाठीच आहे लाविली फुलबाग हि ,
पण तिला फुलवायला पाऊस केव्हा यायचा...!

पेटलो आता असा ना पेटलो इतुका कधी ,
विझविण्या आतुर तो 'मल्हार' केव्हा यायचा...!

हट्ट मी पुरवायला शब्दांस आणून बांधले ,
पण तयांना काळजातील अर्थ केव्हा यायचा ..!

माझ्याच गर्वाच्या नभातील तळपणारा सूर्य मी,
पण तयाला झाकणारा चंद्र केव्हा यायचा ....!

         ;;;;;;;;;;;;; अतुल राणे ;;;;;;;;;;;;;